है शाम , पर धुप कितनी तेज , हवाएं तीछन
की रात का चाँद याद आता है !
है मौसम बदला सा , तुम बदले से ,
पर सामने समय का ठहराव नज़र आता है !
है प्यास मेरी बड़ी और बढी ,
फासलें है हीं , मगर फ़रेब-ए-नज़र दूरियां घटी !
खुद को भुला सा, सामने मेरी तमनाएं
चित्कारियां करती हुई मरी और चली !
कंठ रोके , सांस तोड़े ,
स्वयं से झुके, स्वयं से रुके
पर खुद को खुद से छुपा रहा हूँ मै !
जानता हूँ की मिथ्य है ये ,
पर खुद को भुला रहा हूँ मै !
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