Sunday, June 2, 2013

मैं एक़ लड़की हूँ !

मैं एक़ लड़की हूँ !

पावं दबे से हैं, मुस्कान छुपी हुई सी
भाबनाएँ ओतप्रोत, एहसास कहीं भरी, कहीं रुकी सी
मैं सजी हूँ, मैं स्वरी हूँ
मैं सुसजित हूँ, पर बिखरी हूँ |
ना जाने कितने हीं अरमान तले मैं सिसकी हूँ
मैं एक लड़की हूँ !

मैं मा हूँ, ममता की,
मैं बहन हूँ, सहजता की
मैं अर्धांगिनीँ हूँ, शालीनता की,
मैं बेटी भी हूँ, कोमलता की
मैं निस्वार्थ, निसबत की सखी हूँ,
मैं एक लड़की हूँ !

उजालों से शरमाती हूँ,
भयवाह काली रातों से कतराती हूँ
बारिश में इतराती हूँ, शुष्क गर्मी से घबराती हूँ
ठंडी हवाओं से सिहर जाती हूँ |


मैं खुली हूँ,खुली खिड़की सी,
मैं दबी हूँ, दबी हुई चुपि सी
मैं तेज रफ़्तार में दौड़ती हूँ,
पर अचल समय से, इंतजार में रुकी हूँ
मैं एक लड़की हूँ !

कोई सुन रहा है मुझे, मैं निशब्ध हूँ,
कोई समझ रहा है मुझे, मैं बेसूध हूँ,
मैं पवस की बूँद हूँ,
मैं सुबह की धूध हूँ,
मैं मान हूँ, अभिमान हूँ,
कभी नादान, कभी निष्प्राण हूँ |

मैं कुछ नही मांगती,
मैं स्वयं हीं पूरी हूँ |
सब कुछ न्योछावर है मुझे,
बस प्रेम की भूखी हूँ !


हे नर, हे मानुस, हे समाज, हे देश,
पहचानो मुझे, मैं एक लड़की हूँ !


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