आज दूर सय्यारों में एक तस्वीर दिखी,
अचानक पावस की कुछ बूंदे उनसे गिरी !
बूंदे थी की तेरी ममता की शीतलता,
समुचित मान तृप्त हो गया,
जो कन कन मई बसी निर्मलता !
दूर हुआ तेरा आँचल तो क्या,
मेरे पास तेरी ममता की छावो है.
मेरे शब्द तंग हो चुके है मगर, मेरी कविताओं माओ तेरा भाव है !
शहर दूर है तो क्या, हर रोज तुम्हे समीप पाता हूँ,
अचल है मेरे गीत तो क्या, ठहरे हुए स्वर से तेरे ही गीत गाता हूँ !
अब तो चाँद दिखता है मगर, चाँदनी जलाती है,
मेरी मया नींद के समय तेरी लोडी बहूत याद आती है ,
मेरी मा तेरी बहूत याद आती है !
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