Sunday, May 2, 2010

ख़ास , छु सकूँ समय के उस पल को , जो खुशीआं बिखेर रहे हैं

सोचता हूँ की रोक लूं आंशुओं को ,
जो बेदम्भ होकर , पलकों से आ रहे हैl
ख़ास , छु सकूँ समय के उस पल को ,
जो खुशीआं बिखेर रहे हैं I .

यु तो तम्नाइयेन हजारों है ज़िन्दगी की ,
पर वक़्त सिमटा सा लगता है ,
कस्तियाँ चल रही है मगर ,
समंदर ठहरा सा लगता हैl

इन्ही वीरानियों में एक दिन खो जायेंगे हम ,
खोई हुई एक तस्वीर बन जायेंगे हम .
सोचता हूँ की पकर लूँ उन लम्हों को
जो मुझे हंसी दे रहे है
ख़ास छु लू समय को जो खुशियन बिखेर रहे हैl

No comments:

Post a Comment