Tuesday, July 16, 2013

मैं और तुम

मैं क़हता हूँ,
तुम कहते हो,
मुस्कुराते हुए पलों का,
स्वर्णिम एहसास है ये |

मैं सुनता हूँ,
तुम सुनते हो,
छन-छन छनकते हुए सुमधुर तेरे गीत,
मेरे करणो की प्यास है ये |

छोड़ दो रुंध और धुन्ध को यहीं,
स्मुध पल में खो जायें यहीं कहीं,
मैं तुम्हे देखता हूँ,
तुम मुझे देखते हो,
तस्ब्बुर भरे नयनो के,
इंतज़ार को विराम है ये |

मैं क़हता हूँ, तुम कहते हो,
मुस्कुराते हुए पलों का, स्वर्णिम एहसास है ये |

है मानस मस्तिष्क मेरा मन,
संकुचित विकृत होता पल पल,
है सहस सहारा तुम्हारा,
तुम हर पल रहो मेरे पास अचल |

मैं हंसता हूँ,
तुम हंसते हो,
असमित खुशियों का पैगाम है ये |
मैं सोचता हूँ,
तुम सोचते हो,
सुरभि सम सुरचीत ख़यालों का आदान-प्रदान है ये |

मैं क़हता हूँ, तुम कहते हो,
मुस्कुराते हुए पलों का, स्वर्णिम एहसास है ये |


मैं चलता हूँ,
तुम चलते हो,
दो राहों का एक हीं सैलाब है ये |
मैं रहता हूँ,
तुम रहते हो,
दो दिल मगर एक जान है ये |

मैं क़हता हूँ, तुम कहते हो,
मुस्कुराते हुए पलों का, स्वर्णिम एहसास है ये |